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|रचनाकार=संत जूड़ीराम
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<poem>
अब प्रभु टेर सुनो प्रभु मोरी।
दीन बंध हर अधम उधारन हरियो विपत घनेरी।
जो भौ सागर अगम भरो है दुविधा धार खरेरी।
भरम भौंर अरू मोह मगर है उतरत नहिं पुनि पेरी।
जित देखो तित महाजाल है कहाँ जाये कित केरी।
तुम बिन नाथ और नहिं जानों कृपा करो हरि हेरी।
बूड़त जल गजराज उबारे सुरत नाम पर फेरी।
संकट काट उबार पलक में विपति वरूथ खदेरी।
मंछ रूप धर वेद उबारे कूरम सिंध मथेरी।
ह्यो वराह प्रथमी को पायो को ऊनहिं तुम सेरी।
नरसिंह भयो प्रहलाद उबारे राक्षित उदर उदेरी।
राम रूप धर रावन मारो देवन बंध उबेरी।
द्वापर कृष्णचंद हो प्रगटे कंस केश झकझोरी।
बोध रूप पूरब में प्रगटे कल मल पाप हरेरी।
निहकलंक कलजुग में प्रगटे वेद प्रमान मनेरी।
जूड़ीराम दीन जन टेरों उर मन पीर हरेरी।।
</poem>
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|रचनाकार=संत जूड़ीराम
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अब प्रभु टेर सुनो प्रभु मोरी।
दीन बंध हर अधम उधारन हरियो विपत घनेरी।
जो भौ सागर अगम भरो है दुविधा धार खरेरी।
भरम भौंर अरू मोह मगर है उतरत नहिं पुनि पेरी।
जित देखो तित महाजाल है कहाँ जाये कित केरी।
तुम बिन नाथ और नहिं जानों कृपा करो हरि हेरी।
बूड़त जल गजराज उबारे सुरत नाम पर फेरी।
संकट काट उबार पलक में विपति वरूथ खदेरी।
मंछ रूप धर वेद उबारे कूरम सिंध मथेरी।
ह्यो वराह प्रथमी को पायो को ऊनहिं तुम सेरी।
नरसिंह भयो प्रहलाद उबारे राक्षित उदर उदेरी।
राम रूप धर रावन मारो देवन बंध उबेरी।
द्वापर कृष्णचंद हो प्रगटे कंस केश झकझोरी।
बोध रूप पूरब में प्रगटे कल मल पाप हरेरी।
निहकलंक कलजुग में प्रगटे वेद प्रमान मनेरी।
जूड़ीराम दीन जन टेरों उर मन पीर हरेरी।।
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