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विरह विथा तें लखियतलिखी रहीम लिलार में, मरिबौं झूरि। भई आन की आन।जो नहिं मिलिहै मोहनपद कर काटि बनारसी, जीवन मूरि॥422॥पहुँचे मगरु स्थान॥261॥
उधौं भलौ लोहे की न कहनौलोहार का, कछु पर पूठि। रहिमन कही विचार।साँचे ते भे झूठेजो हनि मारे सीस में, साँची झूठि॥423॥ताही की तलवार॥262॥
भादों निस अँधियरियाबरु रहीम कानन भलो, घर अँधियार। बास करिय फल भोग।बिसरयो सुघर बटोही, शिव आगार॥424॥बंधु मध्य धनहीन ह्वै बसिबो उचित न योग॥263॥
हौं लखिहौ री सजनीबहै प्रीति नहिं रीति वह, चौथ मयंक। नहीं पाछिलो हेत।देखों केहि बिधि हरि सोंघटत घटत रहिमन घटै, लगत कलंक॥425॥ज्यों कर लीन्हें रेत॥264॥
इन बातन कछु होत नबिधना यह जिय जानि कै, कहो हजार। सेसहि दिये न कान।सबही तैं हँसि बोलतधरा मेरु सब डोलि हैं, नन्दकुमार॥426॥तानसेन के तान॥265॥
कहा छलत को ऊधौबिरह रूप धन तम भयो, दै परतीति। अवधि आस उद्योत।सपनेहूं नहिं बिसरैज्यों रहीम भादों निसा, मोहनि-मीति॥427॥चमकि जात खद्योत॥266॥
बन उपवन गिरि सरितावे रहीम नर धन्य हैं, जिती कठोर। पर उपकारी अंग।लगत देह से बिछुरेबाँटनेवारे को लगे, नन्द किसोर॥428॥भलि भलि दरसन दीनहु, सब निसि टारि। कैसे आवन कीनहु, हौं बलिहारि॥429॥ज्यों मेंहदी को रंग॥267॥
अदिहि-ते सब छुटगोसदा नगारा कूच का, जग व्यौहार। बाजत आठों जाम।ऊधो अब न तिनौं भरिरहिमन या जग आइ कै, रही उधार॥430॥को करि रहा मुकाम॥268॥
घेर रह्यौ दिन रतियाँसब को सब कोऊ करै, विरह बलाय। कै सलाम कै राम।मोहन की वह बतियाँहित रहीम तब जानिए, ऊधो हाय॥431॥जब कछु अटकै काम॥269॥
जब तब मोहन झूठीस्वारथ रचन रहीम सब, सौंहें खात। औगुनहू जग माँहि।इन बातन ही प्यारेबड़े बड़े बैठे लखौ, चतुर कहात॥439॥ब्रज-बासिन के मोहन, जीवन प्रान। ऊधो यह संदेसवा, अहक कहान॥440॥पथ रथ कूबर छाँहि॥277॥
मोहि मीत बिन देखेंस्वासह तुरिय उच्चरै, छिन न सुहात। तिय है निहचल चित्त।पल पल भरि भरि उलझतपूत परा घर जानिए, दृग जल जात॥441॥रहिमन तीन पवित्त॥278॥
जिहिके लिये जगत मेंरहिमन बहरी बाज, बजै निसान। गगन चढ़ै फिर क्यों तिरै।तिहिं-ते करे अबोलनपेट अधम के काज, कौन सयान॥461॥रे मन भज निस वासर, श्री बलवीर। जो बिन जाँचे टारत, जन की पीर॥462॥फेरि आय बंधन परै॥296॥
विरहिन को सब भाखतरहिमन मोहि न सुहाय, अब जनि रोय। अमी पिआवै मान बिनु।पीर पराई जानैबरु विष देय, तब कहु कोय॥463॥बुलाय, मान सहित मरिबो भलो॥297॥
सबै कहत हरि बिछुरे, उर धर धीर। बिंदु मों सिंधु समान को अचरज कासों कहै।बौरी बाँझ न जानैहेरनहार हेरान, ब्यावर पीर॥464॥रहिमन अपुने आप तें॥298॥
लखि मोहन की बंसीचूल्हा दीन्हो बार, बंसी जान। नात रह्यो सो जरि गयो।लागत मधुर प्रथम पैरहिमन उतरे पार, बेधत प्रान॥465॥तै चंचल चित हरि कौ, लियौ चुराइ। याहीं तें दुचती सी, परत लखाई॥466॥मी गुजरद है दिलरा, बे दिलदार। इक इक साअत हमचूँ, साल हजार॥467॥नव नागर पद परसी, फूलत जौन। मेटत सोक असोक सु, अचरज कौन॥468॥समुझि मधुप कोकिल की, यह रस रीति। सुनहू श्याम की सजनी, का परतीति॥469॥नृप जोगी भर झोंकि सब जानत, होत बयार। संदेसन तौ राखत, हरि ब्यौहार॥470॥मोहन जीवन प्यारे, कस हित कीन। दरसन ही कों तरफत, ये दृग मीन॥471॥भजि मन राम सियापति, रघुकुल ईस। दीनबन्धु दुख टारन, कौसलधीस॥472॥गर्क अज मैं शुद आलम, चन्द हजार। बे दिलदार कै गीरद, दिलम करार॥473॥दिलबर जद बर जिगरम, तीर निगाह। तपीदा जाँ भी आयद, हरदम आह॥474॥लोग लुगाई हिलमिल, खेतल फाग। परयौ उड़ावन मौकौं, सब दिन काग॥475॥मो जिय कोरी सिगरी, ननद जिठानि। भई स्याम सों तब तें, तनक पिछानि॥476॥होत विकल अनलेखै, सुधर कहाय। को सुख पावत सजनी, नेह लगाय॥477॥अहो सुधाधर प्यारे, नेह निचोर। देखन ही कों तरसे, नैन चकोर॥478॥आँखिन देखत सबही, कहत सुधारि। पै जग साँची प्रीत न, चातक टारि॥479॥पथिक आय पनघटवा, कहता पियाव। पैया परों ननदिया, फेरि कहाव॥480॥या झर में घर घर में, मदन हिलोर। पिय नहिं अपने कर में, करमैं खोर॥481॥बालम अस मन मिलयउँ, जस पय पानि। हंसनि भइल सवतिया, लई बिलगानि॥482॥भार में॥299॥