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माँ / रामदरश मिश्र

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और कुछ अँगुलियाँ
उन्हें दर्द से सहलाती हैं।
 
कुछ आँखें
आँखों में उड़ेल जाती हैं रात के परनाले
जहाँ कहीं भी हैं
मेरी माँ हैं।
 
माँ, जब तक तुम हो
मैं मरूँगा नहीं।
</poem>
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