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विसङ्खारगतं चित्तं, तण्हानं खयमज्झगा॥१५४॥
उपरोक्त पंक्तियाँ [[धम्मपद / पालि|धम्मपद]] के [[जरावग्गो / धम्मपद / पालि|जरावग्गो अध्याय ]] से ली गई हैं। जिस क्षण भगवान बुद्ध को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी, तभी उन्होनें इन पंक्तियों को कहा था। बुद्ध कहते हैं:
''अनेकजातिसंसारं, सन्धाविस्सं अनिब्बिसं।''