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मेरे खिलौने / शीला गुजराल

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<poem>मेरे खिलौने हैं अनमोल,
कोई लंबे, कोई हैं गोल।
कुत्ता, बंदर भालू, शेर,
मिट्टी के ये पीले बेर।
इक्का, साइकिल, टमटम, ट्रेन,
रंग-बिरंगी सुंदर क्रेन।
प्यारी-प्यारी नन्ही गुड़िया,
गोदउठाए कुबड़ी बुढ़िया।
मोटा जोकर ढोल बजाए,
ऊँचे-ऊँचे बोल बुनाए।
सीढ़ी चढ़ता नटखट बंदर,
लिए हाथ में लाल चुकंदर।
छोटा-सा यह तीर कमान,
देखो, इसकी कैसी शान।
अद्भुत यह नन्हीं पिस्तौल,
दो आने में ली थी मोल।
रस्सी फाँदे यह खरगोश
देखो, इसमें कैसा जोश,
देखो, मेरी डोर पतंग,
खूब निराले इसके रंग!
आओ खेलो इनसे यार,
और चलाओ मेरी कार।

-साभार: नंदन, जनवरी, 1969
</poem>
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