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छुपम-छुपैया / अहद प्रकाश

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<poem>ताक-धिना-धिन मारे मैया जाड़े में,
चट कर भागी दूध बिलैया जाड़े में!

सिकुड़ी बैठी सोन चिरैया जाड़े में,
काँप रहे हैं बंदर भैया जाड़े में!

अटकुल-मटकुल हिरन के बच्चे देखो तो,
खेल रहे हैं छुपम-छुपैया जाड़े में!

बूढ़े बब्बा खाँस रहे हैं खटिया पर,
कब से ओढ़े हुए रजैया जाड़े में!

सूरज दद्दा माँग रहे हैं सुबह-सुबह,
गुड़ वाली अदरक की चैया जाड़े में!

हरे-भरे पेड़ों पर किरणें नाच रहीं,
तुम भी नाचो-गाओ भैया जाड़े में।

-साभार: नंदन, जनवरी, 1993, 18
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