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{{KKRachna
|रचनाकार=सूरजपाल चौहान
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>एक हाथ में थैला लेकर
चुन्नू निकल पड़ा बाजार,
शालू तो रोती ही रह गई,
चुन्नू लेकर आया कार।
पापा से वह हँसकर बोला-
देखो पापा मेरी कार।
दो आगे, दो पीछे पहिए,
हैं पूरे के पूरे चार।
ड्राइवर की अब नहीं जरूरत
चाबी से चलती यह कार,
पापा अगर तुम्हें चलना है,
झटपट हो जाओ तैयार।
मम्मी जी, तुम क्यों हँसती हो?
शालू रोती है बेकार,
आओ बैठो मेरे संग तुम,
चलें देखने कुतुब-मीनार।
-साभार: नंदन, जून 1998, 32
</poem>
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चुन्नू निकल पड़ा बाजार,
शालू तो रोती ही रह गई,
चुन्नू लेकर आया कार।
पापा से वह हँसकर बोला-
देखो पापा मेरी कार।
दो आगे, दो पीछे पहिए,
हैं पूरे के पूरे चार।
ड्राइवर की अब नहीं जरूरत
चाबी से चलती यह कार,
पापा अगर तुम्हें चलना है,
झटपट हो जाओ तैयार।
मम्मी जी, तुम क्यों हँसती हो?
शालू रोती है बेकार,
आओ बैठो मेरे संग तुम,
चलें देखने कुतुब-मीनार।
-साभार: नंदन, जून 1998, 32
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