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{{KKRachna
|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=एक गीत लिखने का मन
}}
{{KKCatNavgeet}}
<poem>मैं कहाँ-कहाँ नहीं गया
एक अदद गीत के लिए
वन, पर्वत, नदी, तड़ाग
वृक्ष, झील, निर्झरनी-कूल
पंथ पंक, मरू, उर्वर, घाट
ताल, ताल चोटियाँ, त्रिशूल
वज्र-मौन, विष-बुझे नयन
एक अदद गीत के लिए
लोक तीन चौदहों भुवन
स्वर्ग नरक, चार-चार धाम
चन्द्र, सूर्य, गृह नखत, अमर
सुबह, रात, दोपहरी, शाम
विस्मयादी बोध-चिह्न थे
एक अदद गीत के लिए
गाँव, नगर महाजनादों
सुध, पुर, पुरी, कुटी पृथक
उनिषद, पुराण, वेद, ग्रन्थ
संहिता, स्मृति, मिथक-मिथक
जुगुप्स, घिन, विभत्सता मिली
एक अदद गीत के लिए
मैं कहाँ-कहाँ नहीं गया
एक अदद गीत के लिए </poem>
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|रचनाकार=रामनरेश पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=एक गीत लिखने का मन
}}
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<poem>मैं कहाँ-कहाँ नहीं गया
एक अदद गीत के लिए
वन, पर्वत, नदी, तड़ाग
वृक्ष, झील, निर्झरनी-कूल
पंथ पंक, मरू, उर्वर, घाट
ताल, ताल चोटियाँ, त्रिशूल
वज्र-मौन, विष-बुझे नयन
एक अदद गीत के लिए
लोक तीन चौदहों भुवन
स्वर्ग नरक, चार-चार धाम
चन्द्र, सूर्य, गृह नखत, अमर
सुबह, रात, दोपहरी, शाम
विस्मयादी बोध-चिह्न थे
एक अदद गीत के लिए
गाँव, नगर महाजनादों
सुध, पुर, पुरी, कुटी पृथक
उनिषद, पुराण, वेद, ग्रन्थ
संहिता, स्मृति, मिथक-मिथक
जुगुप्स, घिन, विभत्सता मिली
एक अदद गीत के लिए
मैं कहाँ-कहाँ नहीं गया
एक अदद गीत के लिए </poem>