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{{KKRachna
|रचनाकार=सीताराम गुप्त
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>बोला उड़ पीपल का पत्ता,
‘‘चाहूँ तो पहुँचूँ कलकत्ता।
कहने को तू सड़क बड़ी है,
पर बरसों से यहीं पड़ी है।’’
बोली सड़क-‘‘न शेखी मार,
मैं तो जाती कोस हजार।’’
</poem>
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‘‘चाहूँ तो पहुँचूँ कलकत्ता।
कहने को तू सड़क बड़ी है,
पर बरसों से यहीं पड़ी है।’’
बोली सड़क-‘‘न शेखी मार,
मैं तो जाती कोस हजार।’’
</poem>