भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अजनबी / पृथ्वी पाल रैणा

970 bytes added, 16:37, 4 अक्टूबर 2015
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा }} {{KKCatKavita}} <poem> मैं ही...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पृथ्वी पाल रैणा
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
मैं ही वह मैं नहीं हूँ,
या यह शहर पराया है ?
मेरी आँखों में उमड़ते हुए
सैलाव को कोई देखता नहीं ।
इस तरह गुजऱ जाता हूं
इस शहर की गलियों से
जैसे कि यहाँ कोई मुझे
जानता नहीं।
ये लोग भी कैसे हैं
गुमसुम-से
थके-हारे- से
खुद अपनी ही तस्वीर को
पहचानते नहीं ।
मैं खो गया हूँ भीड़ में
मेरी पहचान भी गुम है
अब जाकर किसे पूछूँ
मुझे जानते हो क्या ?

</poem>