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रूह पर भारी पड़ा
जब तश्नगी का सिलसिला,
ज़िंदगी इक ख़ौफ़ से
फिर उम्र भर लड़ती रही ।
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रूह पर भारी पड़ा
जब तश्नगी का सिलसिला,
ज़िंदगी इक ख़ौफ़ से
फिर उम्र भर लड़ती रही ।
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