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चक्खन मियाँ / मंगरूराम मिश्र

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<poem>चक्खन मियाँ एक दिन घर में लगे पकाने खाना,
पहली बार जिंदगी में था चूल्हा पड़ा जलाना!
खर पतवार इकट्ठी करके फूँक जोर की मारी,
निकली लपट लपककर ऐसी जली मियाँ की दाढ़ी!
</poem>
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