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<poem>बड़े सवेरे जग जाते क्यों
बँधी गाँठ को खोलो जी,
नींद नहीं क्या आती तुमको
मुर्गे राजा बोलो जी।
देकर बांग जगाते तुम ही
भोले-भाले बच्चे जी,
नानी आती याद सभी को
लगते तुम ना अच्छे जी।
क्या ये अच्छी बात जरा-सा,
खुद को अरे टटोलो जी।
जाना पड़ता शाला उठकर
ढोकर बस्ता भारी जी,
दुखने लगते दोनों कंधे
दुखती पीठ हमारी जी।
बस्ता लेकर, आज हमारे
संग साथ तुम हो लो जी।
करते विनती हाथ जोड़ हम,
कल से नहीं जगाना तुम,
लंबी चादर तान नींद की-
आँख मींच सो जाना तुम।
जल्दी से हाँ करो, फैसला-
लेकर झटपट बोलो जी।
</poem>
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