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गोलू के मामा / रमेशचन्द्र शाह

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<poem>
गोलू के मामा आए,
देख रहे सब मुँह बाए!
मुँह उनका है गुब्बारा,
था किसने उन्हें पुकारा।
नारंगी उनको भाए,
गोलू के मामा आए!

वे पूरब से हैं आते
गोलू से गप्प लड़ाते,
हौले से उसे सुलाकर
फिर पच्छिम को उड़ जाते।

सच बात अगर मैं बोलूँ,
तो पोल पुरानी खोलूँ।
सूरज का फटा पजामा,
सिलते गोलू के मामा।

पर जाने क्या जादू है
रहते हैं सब पर छाए,
सब देख रहे मुँह बाए
गोलू के मामा आए!

ये बड़े दिनों में आए
झोले में हैं कुछ लाए,
हमको तो पता चले तब
जब गोलू हमें खिलाए।

लो दिखा दिखा नारंगी
देते हैं एक बताशा,
यूँ सबको देते झाँसा
करते ये खूब तमाशा।

हर पंद्रह दिन में कैसे
आ जाते बिना बुलाए,
मैं देख रहा मुँह बाए
गोलू के मामा आए।
</poem>
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