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{{KKRachna
|रचनाकार=तारादत्त निर्विरोध
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>कोयल को चुप देख गधे ने
शुरू किया जब गाना,
तभी अचानक एक ऊँट का
हुआ कहीं से आना।
कहा ऊँट ने गला फाड़ कर
‘ओ उल्लू के पट्ठे!!
जान-बूझकर खोल रहा क्यों
अपने कच्चे चिट्ठे!
-साभार: धर्मयुग, 1968
</poem>
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शुरू किया जब गाना,
तभी अचानक एक ऊँट का
हुआ कहीं से आना।
कहा ऊँट ने गला फाड़ कर
‘ओ उल्लू के पट्ठे!!
जान-बूझकर खोल रहा क्यों
अपने कच्चे चिट्ठे!
-साभार: धर्मयुग, 1968
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