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{{KKRachna
|रचनाकार=सुरेश सपन
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|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>जादूगर ने खेल दिखाया,
मज़ा बहुत बच्चों को आया।
खाली हैट दिखाकर काला,
उसमें से खरगोश निकाला।
उस पर ऐसा मंतर मारा,
वो मुर्गा बन गया बिचारा।
उसने हाथ दिखाकर खाली,
गेंद हवा में एक उछाली।ं
फूँक मारकर उसे बुलाया,
लेकिन वापस अंडा आया।
फिर उसने रूमाल निकाले,
बने हार जो फूलों वाले।
उन फूलों पर छड़ी घुमाई,
फूलों की बन गई मिठाई।
पर क्यों बाँटी नहीं मिठाई,
मैं यह सोच रहा हूँ भाई।
</poem>
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<poem>जादूगर ने खेल दिखाया,
मज़ा बहुत बच्चों को आया।
खाली हैट दिखाकर काला,
उसमें से खरगोश निकाला।
उस पर ऐसा मंतर मारा,
वो मुर्गा बन गया बिचारा।
उसने हाथ दिखाकर खाली,
गेंद हवा में एक उछाली।ं
फूँक मारकर उसे बुलाया,
लेकिन वापस अंडा आया।
फिर उसने रूमाल निकाले,
बने हार जो फूलों वाले।
उन फूलों पर छड़ी घुमाई,
फूलों की बन गई मिठाई।
पर क्यों बाँटी नहीं मिठाई,
मैं यह सोच रहा हूँ भाई।
</poem>