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|रचनाकार=शिशुपाल सिंह 'निर्धन'
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<poem>हाथी से यूँ बोला ऊँट-
बोल रहे हो हमसे झूठ।
नदी किनारे जाते हो,
गन्ने खाकर आते हो।
हमको मित्र बताते हो,
साथ नहीं ले जाते हो।
बोला हाथी टूटा मौन-
तुम गन्ने वाले हो कौन?
जिसके गन्ने खाता हूँ,
सिर पर उसे बिठाता हूँ!
</poem>
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