भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
एकाएक मुझे भान !!<br>
पीछे से किसी अजनबी ने<br>
कन्धे पर रक्खा हाथरखा।<br>
चौंकता मैं भयानक<br>
एकाएक थरथर रेंग गयी सिर तक,<br>
अकेले में किरणों की गीली है हलचल<br>
गीली है हलचल!!<br><br>