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{{KKRachna
|रचनाकार=कृष्ण शलभ
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatBaalKavita}}
<poem>लल्लूमल का भागा घोड़ा,
घोड़ा सरपट दौड़ा-दौड़ा!
खड़ी रेल में हुआ सवार,
घोड़ा जा पहुँचा हरिद्वार।
हरिद्वार में मिला ना खाना,
घोड़ा जा पहुँचा लुधियाना।
लुधियाना में लग गई सर्दी,
पड़ी पहननी ऊनी वर्दी।
जैसे ठीक हुआ कुछ हाल,
घोड़ा जा पहुँचा भोपाल।
देखे वहाँ अनोखे ताल,
खाने लगा खूब तर माल।
घूमे था इक दिन बुधवारा,
घोड़े को बिल्ली ने मारा।
घोड़े का मुँह लटक रहा है,
घोड़ा तब से भटक रहा है।
खत्म हो गए सारे पैसे,
सोच रहा घर लौटे कैसे!
</poem>
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|रचनाकार=कृष्ण शलभ
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|संग्रह=
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<poem>लल्लूमल का भागा घोड़ा,
घोड़ा सरपट दौड़ा-दौड़ा!
खड़ी रेल में हुआ सवार,
घोड़ा जा पहुँचा हरिद्वार।
हरिद्वार में मिला ना खाना,
घोड़ा जा पहुँचा लुधियाना।
लुधियाना में लग गई सर्दी,
पड़ी पहननी ऊनी वर्दी।
जैसे ठीक हुआ कुछ हाल,
घोड़ा जा पहुँचा भोपाल।
देखे वहाँ अनोखे ताल,
खाने लगा खूब तर माल।
घूमे था इक दिन बुधवारा,
घोड़े को बिल्ली ने मारा।
घोड़े का मुँह लटक रहा है,
घोड़ा तब से भटक रहा है।
खत्म हो गए सारे पैसे,
सोच रहा घर लौटे कैसे!
</poem>