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<poem>वह उसे पाप की तरह चाहेगी
वह उसे पुण्य की तरह चाहेगी

किसी अनजान जगह के
अनजान कमरे में
वह करेगी उससे प्रेम अपने ख्याल में

कि जैसे नींद में चलते-चलते
चली गई हो वहां
बेवजह बिना बुलाए

कि जैसे सदियों से बैठी हो वह
अपने भीतर उस जगह
जहां रहते हैं दुःस्वप्न
इच्छाओं के पागल होने के इंतजार में

वह उसे चाहेगी
उस सपने की तरह
जिसे देखा हो उसने
हमेशा सिर्फ खुली आंखों से

कि जैसे वह कंधा हो
किसी बांझ के रोने के लिए

जैसे चाहना कोई शाप हो
न रुकनेवाला विलाप हो
या आत्मप्रलाप
वह उसे चाहेगी

जैसे चाहना सुख से बचना हो
और दुख से भी बचाव हो
वह उसे चाहेगी!</poem>
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