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{{KKRachna
|रचनाकार= अंजना संधीर
|संग्रह=
}}
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<poem>मैं एक व्यक्ति हूं
मेरी मर्जी है, जिस से चाहूं
इच्छा से मिलूं
मां बनूं या गर्भपात करवा लूं
बच्चे को पिता का नाम दूं या न दूं
मुझे अधिकार है अपना जीवन खुद जियूं
किसी की मर्जी मुझ पर थोपी नहीं जा सकती
मैंने यह इस धरती पर आकर जाना है
इसीलिये मैं अब अपने मुल्क वापस नहीं जाना चाहती
वहां पशु और औरत की
कोई मर्ज़ी नहीं होती
मैं औरत ही नहीं एक व्यक्ति भी हूं
मैं एक व्यक्ति की तरह जीना चाहती हूं!</poem>
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<poem>मैं एक व्यक्ति हूं
मेरी मर्जी है, जिस से चाहूं
इच्छा से मिलूं
मां बनूं या गर्भपात करवा लूं
बच्चे को पिता का नाम दूं या न दूं
मुझे अधिकार है अपना जीवन खुद जियूं
किसी की मर्जी मुझ पर थोपी नहीं जा सकती
मैंने यह इस धरती पर आकर जाना है
इसीलिये मैं अब अपने मुल्क वापस नहीं जाना चाहती
वहां पशु और औरत की
कोई मर्ज़ी नहीं होती
मैं औरत ही नहीं एक व्यक्ति भी हूं
मैं एक व्यक्ति की तरह जीना चाहती हूं!</poem>