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|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>

आंख झपकते ही साजन ने जीवन का मुख मोड़ दिया
किस आलम में हम को पकड़ा किस आलम में छोड़ दिया

अपने और पराये का क्या भेद हमें समझाते हो
अपना-पराया देखने वाली आंख को कब का फोड़ दिया

क्या ज्ञानी क्या अज्ञानी सब एक ही नाम को रटते हैं
जब भी उन का हाथ किसी ने बीच भंवर में छोड़ दिया

मेरी अना<ref>अहं</ref> मेरी राहों में कांटे बन कर बिखरी है
जब भी मुझको नींद आई है इसने मुझे झंझोड़ दिया

लाख कहो दीवाना हमको अपना हठ नहीं छोड़ेंगे
दिल के टूटे जाम में हमने अपना ख़ून निचोड़ दिया

यास<ref>निराशा</ref> के बादल घेर चुके थे “ज़ाहिद” दिल की नगरी को
तेरी इक मुस्कान ने पगली उनका रुख़ भी मोड़ दिया
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</poem>