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|रचनाकार=ज़ाहिद अबरोल
|संग्रह=दरिया दरिया-साहिल साहिल / ज़ाहिद अबरोल
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>

आधी बात ज़बां से आधी आंखों से कहता है
एक मुकम्मल शख़्स अधूरी दुनिया में रहता है

दिन भर तो तपती रहती हैं इक सहरा की सूरत
शाम ढले तो इन आंखों से इक दरिया बहता है

उसका क़त्ल हुए तो सदियां बीत गई हैं शायद
अब वो दिन भर अपनी लाश को ही ढोता रहता है

माएं तो दो चार बार इस दर्द को सहती होंगी
शाइर तो जब भी लिखता है दर्द-ए-ज़ह सहता है

यास में पानी से लबरेज़ समुंदर भी सूखे हैं
आस में “ज़ाहिद” सहराओं में भी दरिया बहता है
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</poem>