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{{KKRachna
|रचनाकार=कुँअर बेचैन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई-सी तुम
ज़िन्दगी है धूप, तो मदमस्त पुरवाई-सी तुम
आज मैं बारिश मे जब भीगा तो तुम ज़ाहिर हुईं
जाने कब से रह रही थी मुझमें अंगड़ाई-सी तुम
चाहे महफ़िल में रहूं चाहे अकेले में रहूं
गूंजती रहती हो मुझमें शोख शहनाई-सी तुम
लाओ वो तस्वीर जिसमें प्यार से बैठे हैं हम
मैं हूं कुछ सहमा हुआ-सा, और शरमाई-सी तुम
मैं अगर मोती नहीं बनता तो क्या बनता 'कुँअर'
हो मेरे चारों तरफ सागर की गहराई-सी तुम</poem>
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|रचनाकार=कुँअर बेचैन
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>शोर की इस भीड़ में ख़ामोश तन्हाई-सी तुम
ज़िन्दगी है धूप, तो मदमस्त पुरवाई-सी तुम
आज मैं बारिश मे जब भीगा तो तुम ज़ाहिर हुईं
जाने कब से रह रही थी मुझमें अंगड़ाई-सी तुम
चाहे महफ़िल में रहूं चाहे अकेले में रहूं
गूंजती रहती हो मुझमें शोख शहनाई-सी तुम
लाओ वो तस्वीर जिसमें प्यार से बैठे हैं हम
मैं हूं कुछ सहमा हुआ-सा, और शरमाई-सी तुम
मैं अगर मोती नहीं बनता तो क्या बनता 'कुँअर'
हो मेरे चारों तरफ सागर की गहराई-सी तुम</poem>