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{{KKRachna
|रचनाकार=सत्य मोहन वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>राग ज्यों होता तिरोहित मींड़ में
रह गयी हैं सिसकियाँ उत्पीड़ में .
आँधियाँ हैरान इतना कर गयीं
कैंचियाँ उगने लगी हैं चीड़ में .
ज़िन्दगी का एक अनुभव ये भी है
चीटियाँ सी रेंगती हैं रीड़ में .
चोंच भर पानी परिंदे क्या करें
आग लगती जा रही है नीड़ में .
कुल मिलकर बस यही हासिल रहा
कोई भी सुनता नहीं है इस भीड़ में .
</poem>
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|रचनाकार=सत्य मोहन वर्मा
|अनुवादक=
|संग्रह=
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<poem>राग ज्यों होता तिरोहित मींड़ में
रह गयी हैं सिसकियाँ उत्पीड़ में .
आँधियाँ हैरान इतना कर गयीं
कैंचियाँ उगने लगी हैं चीड़ में .
ज़िन्दगी का एक अनुभव ये भी है
चीटियाँ सी रेंगती हैं रीड़ में .
चोंच भर पानी परिंदे क्या करें
आग लगती जा रही है नीड़ में .
कुल मिलकर बस यही हासिल रहा
कोई भी सुनता नहीं है इस भीड़ में .
</poem>