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चल रहा हूं मैं / संजय पुरोहित

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{{KKCatKavita‎}}<poem>निराशा की घटाघोप
अंधियारी गुफा में भी
आसमयी इक अणिमा की
सीध में
चल रहा हूं नियति की नमी भरी
गीली सीली आंखों के साथ
प्रस्फूीटन की उर्जा
की उडीक में
चल रहा हूं
सूखे होठों के साथ
दुर्गम पथ पर
आस से उगे
पग फालों के साथ
चल रहा हूं
अपने साये के बंतळ से खुद को भरमाता
चल रहा हूं
अनाम क्षितिज के उस छोर तक पहूंचने की
ललक में चल रहा हूं
सुन लक्ष्य
मेरे पदचाप
अभी चल रहा हूं मैं
</poem>
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