भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा चमोली
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>1
कक्षा कक्ष की साफ सुथरी दीवारें
डराती हैं मुझे
स्ंाशय पैदा करती हैं
इन खाली दीवारों की ओर ताकती नजरें
अनायास खो नहीं जाती होंगी शून्य में
इन कमरों में बैठे बच्चे
कितना बेगानापन महसूस करते होंगे
पाते ही मौका
भर देना चाहते होंगे इनमें
अपनी कुठांओं के चिन्ह
निकल भागना चाहते होंगे वहॉ
जहॉ अपने मन का कुछ कर पाएं।
2
कुछ कहना चाहती हैं
स्कूल की दीवारें
छूना चाहती हैं
नर्म हथेलियों की मासूम गर्माहटें
भरना चाहती हैं
अपनी कोरी साफ काया में
नटखट कल्पनाशीलता के रंग
थक गयी हैं वे
जगहों को बॉटते-बॉटते
बालमन को भाने वाली
अपनी सी लगने वाली
पंक्तियों से
सजना चाहती हैं
स्कूल में अपनी
सक्रिय भागीदारी की मॉग करती हैं दीवारें।</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=रेखा चमोली
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>1
कक्षा कक्ष की साफ सुथरी दीवारें
डराती हैं मुझे
स्ंाशय पैदा करती हैं
इन खाली दीवारों की ओर ताकती नजरें
अनायास खो नहीं जाती होंगी शून्य में
इन कमरों में बैठे बच्चे
कितना बेगानापन महसूस करते होंगे
पाते ही मौका
भर देना चाहते होंगे इनमें
अपनी कुठांओं के चिन्ह
निकल भागना चाहते होंगे वहॉ
जहॉ अपने मन का कुछ कर पाएं।
2
कुछ कहना चाहती हैं
स्कूल की दीवारें
छूना चाहती हैं
नर्म हथेलियों की मासूम गर्माहटें
भरना चाहती हैं
अपनी कोरी साफ काया में
नटखट कल्पनाशीलता के रंग
थक गयी हैं वे
जगहों को बॉटते-बॉटते
बालमन को भाने वाली
अपनी सी लगने वाली
पंक्तियों से
सजना चाहती हैं
स्कूल में अपनी
सक्रिय भागीदारी की मॉग करती हैं दीवारें।</poem>