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नाकामयाब / रेखा चमोली

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<poem>कामयाब बच्चे
चले जाते दूर
कभी-कभार
लोक कथा की तरह याद करते
अपना घर-परिवार, गाँव-चौक
खुद की जरूरतें ही
पूरी नहीं कर पाते

नाकामयाब बच्चों की
बनती रेल
गाँव और शहर के बीच

इन्हीं के भरोसे होते
खेत-जंगल
रीति-रिवाज
संस्कृति-परम्पराएं
टैम-बेटैम/बेर-कुबेर
ये ही लेते खोज-खबर
बुआ, मौसी, बहन, बेटी की
दुख बीमारी में
थामते बूढ़ी-बाहें

शादी-ब्याह
जीवन-मरण
नाते-रिश्तेदारी
हर जगह दिखते
आग सुलगाते
पानी भरते, खाना परोसते
पंडाल सजाते
कुर्सियां लगाते
जिन पर सप्रेम
बिठाया जाता
छुट्टियां मनाने आए
कामयाब बच्चों को। </poem>
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