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|रचनाकार=कुमार रवींद्र
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|संग्रह=चेहरों के अन्तरीप / कुमार रवींद्र
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<poem>रोज़ सागर के थपेड़े
छेद वाली नाव
दूर सारे ठाँव

थके हाथों में समेटे
रोशनी के जाल
धूप-मछुए बाँधते हैं
वही बूढ़े पाल

दिन-ढले तक खोजते हैं
सीपियों के गाँव
दूर सारे ठाँव

नींद-डूबी मछलियों के
झुंड हैं हैरान
शंख रह-रह गूँजते हैं
उठ रहा तूफान

लहर के नीचे अँधेरे
जंगलों की छाँव
दूर सारे ठाँव
</poem>
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