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{{KKRachna
|रचनाकार=राग तेलंग
|संग्रह=
}}
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<poem>कहां जाना था,कहां आ गया ?
कितना जाना पहचाना-सा
मगर
है कितना शाश्वत
यह प्रश्न !
आलोड़ित होता
उनके ही भीतर
जिन्हें होती
चाह एक दिशा की
निरंतर
मंथन में रखता
जो स्वयं को
उस तक ही पहुंचता
हो चाहे वह
प्रश्न मार्ग का
या हो कोई
अभीष्ट ।
</poem>
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<poem>कहां जाना था,कहां आ गया ?
कितना जाना पहचाना-सा
मगर
है कितना शाश्वत
यह प्रश्न !
आलोड़ित होता
उनके ही भीतर
जिन्हें होती
चाह एक दिशा की
निरंतर
मंथन में रखता
जो स्वयं को
उस तक ही पहुंचता
हो चाहे वह
प्रश्न मार्ग का
या हो कोई
अभीष्ट ।
</poem>