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कमाल की औरतें ५ / शैलजा पाठक

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<poem>हथेलियों को जोड़कर
आधे चांद पर वारी-वारी जाती किशोर लड़कियां
सु‹दर राजकुमार को मुट्ठियों में बांध
चूम लेती हैं
एक दिन इनकी गोल सफेद हथेली पर
एक गोल मेहंदी का जलता सूरज
इनकी आंखें चुधिया देता है
कि असीम Œप्यार पाएंगी ये राजकुमारियां
रंग के चटक होने की कहानियां झूठी नहीं होतीं

अपने नन्हे पैरों के छापे से लक्ष्मी बनी ये
ƒघर की दहलीज के अंदर...
अपने सपनों के बाहर आ जाती हैं
साटन के कपड़े सी मसकती सोच पर
ये बिछाती हैं कोशिशों की नई धुली चादर
बार-बार अपने हाथ के अधूरे चांद को देख
आंखें मूंद लेती हैं
आईने में अपने अतीत की खिलखिलाहट को
लगाती हैं नजर का टीका
इनके सुरीले गानों में गूंजता है
इनके अकेलेपन का सन्नाटा
बचपन के ƒघूँघरू में अवसाद ƒघर बना लेता है

ये घर से
ƒघर तक के सफर में
चांद हथेली राजकुमार खिलखिलाहट की व्यवस्था के बीच
ये उतार दी गई हैं एक लम्बी सुरंग में
जहां जुगनू सी उम्मीद है
इनके लक्ष्मी वाले नन्हे पैर
बिना निशां छोड़े निकल जाना चाहते हैं
इनकी सोची बनाई हुई दुनिया की राह पर
ये सफेद परियों के लिबास में
बेतहाशा भाग रही हैं
सफेद किताबी पन्ने में राजकुमार भाला तलवार है
काली ऊंची दीवारों के पीछे से
एक आवाज़ टूट कर चीख रही है

हथेली में चांद है मेरे कि मेरी मेहंदी का रंग
चटक लाल।</poem>
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