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{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatStreeVimarsh}}
<poem>स्त्रियों का कोई वर्ग नहीं होता
धर्म नहीं जात नहीं होती
सब मिलकर बस वो स्त्री होती है
कुछ ऐसी जिनकी चमचमाती
गाडिय़ों के पीछे काले शीशे होते हैं
उनके तलवे नर्म मुलायम होते हैं
उनके नीचे जमीं नहीं होती
वो लडख़ड़ाती चलती हैं
कुछ ऐसी जो गाली खाती हैं
मार खाती हैं और अपने आपको
अपने बच्चों के लिए बचाती हैं
एक ऐसी जो अपने को दांव पर लगा कर
पति के सपनों को पंख देती है
और एक ऐसी जो सपने नहीं देखती
एक वो जो जलती-भुनती
अपनी मुस्कराहट को सामाय बनाए रखती है
कुछ स्त्रियाँ मरी हुई एक देह होती हैं
मशीनी दिनचर्या की धुरी पर
घुरघुरराती काम निपटाती
ये सभी प्रकार की स्त्रियाँ
मरती हैं एक सी मौत
जब इनका सौदा किया जाता है
जब इन्हें रौंदा जाता है
जब इनके गर्भ में इन्हीं का क़त्ल होता है
इनके आंसुओं का रंग लाल होता है
दर्द के थक्के जमे होते हैं इनकी देह में...।</poem>
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|संग्रह=
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<poem>स्त्रियों का कोई वर्ग नहीं होता
धर्म नहीं जात नहीं होती
सब मिलकर बस वो स्त्री होती है
कुछ ऐसी जिनकी चमचमाती
गाडिय़ों के पीछे काले शीशे होते हैं
उनके तलवे नर्म मुलायम होते हैं
उनके नीचे जमीं नहीं होती
वो लडख़ड़ाती चलती हैं
कुछ ऐसी जो गाली खाती हैं
मार खाती हैं और अपने आपको
अपने बच्चों के लिए बचाती हैं
एक ऐसी जो अपने को दांव पर लगा कर
पति के सपनों को पंख देती है
और एक ऐसी जो सपने नहीं देखती
एक वो जो जलती-भुनती
अपनी मुस्कराहट को सामाय बनाए रखती है
कुछ स्त्रियाँ मरी हुई एक देह होती हैं
मशीनी दिनचर्या की धुरी पर
घुरघुरराती काम निपटाती
ये सभी प्रकार की स्त्रियाँ
मरती हैं एक सी मौत
जब इनका सौदा किया जाता है
जब इन्हें रौंदा जाता है
जब इनके गर्भ में इन्हीं का क़त्ल होता है
इनके आंसुओं का रंग लाल होता है
दर्द के थक्के जमे होते हैं इनकी देह में...।</poem>