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कमाल की औरतें ४० / शैलजा पाठक

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|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
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<poem>तुमने तय की
मेरे अंदर बाहर की
ज़िन्दगी

मेरे तौर तरीके
बातचीत
मेरे दोस्त, मेरा परिवार भी
तय कर दिया तुमने

अब मुझे
तय करने दो
कि तुम्हें
क्या तय करना चाहिए
क्या नहीं।
</poem>
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