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{{KKRachna
|रचनाकार=शैलजा पाठक
|अनुवादक=
|संग्रह=मैं एक देह हूँ, फिर देहरी
}}
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<poem>क्रमश: कम मीठी होने लगी
पिता की चाय
जरा पतला हो गया दूध
संकुचित होने लगा कमरा
अ€सर टूटे मिलते कुरते के बटन
दर्द ’ज्यादा
और मरहम कम होने लगे
मैली रहने लगी चादर
मछरदानी के फटे छेदों से
मच्छर से ’ज्यादा कुछ और
डंक मारता
पिताजी एक स्टूल पर समेट दिए गए
आर्थिक मंदी का असर
रिश्तों पर भी होता है।</poem>
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