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|संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>हम निहारते रूप काँच के पीछे
हाँप रही है, मछली ।
रूप तृषा भी
(और काँच के पीछे)
हे जिजीविषा ।