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तेरा यार आ गया / कमलेश द्विवेदी

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<poem>करने को अपनी जान वो निसार आ गया.
पहलू में तेरे फिर से तेरा यार आ गया.

फूलों पे उसने हाथ अपना बस रखा ही था,
हाथों में जाने कैसे उसके खार आ गया.

जब उसने अपनी जान दे दी सच के वास्ते,
तब उसके सच पे सबको ऐतबार आ गया.

खुद पे किया यकीन तो मैं डूबने लगा,
उस पे किया यकीन तो मैं पार आ गया.

अच्छा हुआ जो आपने दीं ठोकरें मुझे,
मेरी गजल में देखिये निखार आ गया.
</poem>
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