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|रचनाकार=कमलेश द्विवेदी
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<poem>उसने वादा तोड़ दिया.
मुझको कितना तोड़ दिया.

जिसमें देख सँवरता था,
वो आईना तोड़ दिया.

अपने सपनों में खोया,
मेरा सपना तोड़ दिया.

बच्चा कैसे खुश होगा,
उसका खिलौना तोड़ दिया.

ख्वाब दिखाकर महलों के,
एक घरौंदा तोड़ दिया.

अच्छा रिश्ता पाया तो,
सच्चा रिश्ता तोड़ दिया.
</poem>
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