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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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<poem>
उजली उजली बर्फ़ के नीचे पत्थर नीला नीला है
तेरी यादों में ये सर्द दिसम्बर नीला नीला है

दिन की रंगत ख़ैर गुज़र जाती है बिन तेरे, लेकिन
कत्थई-कत्थई रातों का हर मंज़र नीला नीला है

दूर उधर खिड़की पे बैठी सोच रही हो मुझको क्या ?
चाँद इधर छत पर आया है, थक कर नीला नीला है

तेरी नीली चुनरी ने क्या हाल किया बाग़ीचे का
नारंगी फूलों वाला गुलमोहर नीला नीला है

बादल के पीछे का सच अब खोला तेरी आँखों ने
तू जो निहारे रोज़ इसे तो अम्बर नीला नीला है

हुस्न भले हो रौशन तेरा लाल-गुलाबी रंग लिये
इश्क़ का तेरे परतौ(1) लेकिन दिल पर नीला नीला है

इक तो तू भी साथ नहीं है, ऊपर से ये बारिश उफ़
घर तो घर, सारा-का-सारा दफ़्तर नीला नीला है

1. परतौ = चमक, आभा



(मासिक वागर्थ, सितम्बर 2013)
</poem>
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