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वर्तनी ठीक की है।
तालिब-ए-ज़मज़म-ए-बुलबुल-ए-शैदा=फूलों पर न्योछावर होने वाली बुलबुल के नग्मों का इच्छुक<br><br>
वाह क्या राह दिखाई हमें मुर्शाद मुर्शिद ने<br>
कर दिया काबे को गुम और कलीसा न मिला<br><br>
मुर्शादमुर्शिद=गुस्रगु्रू; कलीसा=चर्च,गिरजाघर<br><br>
सय्यद उठे तो गज़ट ले के तो लाखों लाए<br>
शैख़ शेख़ क़ुरान दिखाता फिरा पैसा न मिला<br><br>
गज़ट=समाचार पत्र <br>
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