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बालकेलि / प्रेमघन

No change in size, 06:37, 30 जनवरी 2016
हमहूँ सब संजोगन जब इन ठौरन जाते।
भाँति-भाँति के खेलन सों तहँ मन बहलाते॥
फुटे फूट कोऊ कोउ ल्यावैं कोऊ कोउ भुट्टे लै घूमैं।पके-पके पेहटन कोऊ कोउ करन मलैं मुख चूमैं॥
बहु विधि बरसाती जीवन कोउ पकरि लियावत।
अतिहि बिचित्र बिलोकि चकित औरनहिं दिखावत॥
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