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दीन गुनी सज्जनों में निपट विनीत बने,
::प्रेमघन नित नाते नेह के निबाहिये।
राग रोष औरों से न हानि लाभ कुछ उसी,
::नन्द के किसोर की कृपा की कोर चाहिए॥
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