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{{KKRachna
|रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
}}
{{KKCatBrajBhashaRachna}}
<poem>
हमैं जो हैं चाहते निबाहते हैं प्रेमघन,
::उन दिलदारों से ही मेल मिला लेते हैं।
दूर दुत्कार देते अभिमानी पशुओं को,
::गुनी सज्जनों की सदा नेह नाव खेते हैं॥
आस ऐसे तैसों की करैं तो कहो कैसे,
::महाराज वृजराज के सरोज पद सेते हैं।
मन मानी करते न डरते तनिक नीच,
::निन्दकों के मुँह पर खेखार थूक देते हैं॥
</poem>
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|संग्रह=प्रेम पीयूष / बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'
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<poem>
हमैं जो हैं चाहते निबाहते हैं प्रेमघन,
::उन दिलदारों से ही मेल मिला लेते हैं।
दूर दुत्कार देते अभिमानी पशुओं को,
::गुनी सज्जनों की सदा नेह नाव खेते हैं॥
आस ऐसे तैसों की करैं तो कहो कैसे,
::महाराज वृजराज के सरोज पद सेते हैं।
मन मानी करते न डरते तनिक नीच,
::निन्दकों के मुँह पर खेखार थूक देते हैं॥
</poem>