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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
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<poem>
एक मुद्दत से हुये हैं वो हमारे यूँ तो
चाँद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो
तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूं
बिन तेरे वक़्त ये गुज़रे न गुज़ारे यूँ तो
राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे ख़ूब इशारे यूँ तो
नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर
हाँ, तेरे ज़िक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो
तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्ज़ी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो
ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो
साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो
(त्रैमासिक सरस्वती सुमन जनवरी-मार्च 2010, त्रैमासिक नई ग़ज़ल जुलाई-सितम्बर 2012)
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एक मुद्दत से हुये हैं वो हमारे यूँ तो
चाँद के साथ ही रहते हैं सितारे, यूँ तो
तू नहीं तो न शिकायत कोई, सच कहता हूं
बिन तेरे वक़्त ये गुज़रे न गुज़ारे यूँ तो
राह में संग चलूँ ये न गवारा उसको
दूर रहकर वो करे ख़ूब इशारे यूँ तो
नाम तेरा कभी आने न दिया होठों पर
हाँ, तेरे ज़िक्र से कुछ शेर सँवारे यूँ तो
तुम हमें चाहो न चाहो, ये तुम्हारी मर्ज़ी
हमने साँसों को किया नाम तुम्हारे यूँ तो
ये अलग बात है तू हो नहीं पाया मेरा
हूँ युगों से तुझे आँखों में उतारे यूँ तो
साथ लहरों के गया छोड़ के तू साहिल को
अब भी जपते हैं तेरा नाम किनारे यूँ तो
(त्रैमासिक सरस्वती सुमन जनवरी-मार्च 2010, त्रैमासिक नई ग़ज़ल जुलाई-सितम्बर 2012)