भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
ये रात है नाराज़ जो देखा कि हवा से
दो-एक चरागों को बुझाया न गया है