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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
अपने पहलू में जगह गर वो ज़रा सी देंगे
चाँद-सूरज भी हमें झुक के सलामी देंगे
जश्न हो ख़त्म ज़रा क़त्ल का मेरे, तो फिर
चल के कुछ यार भी क़ातिल की गवाही देंगे
उनके दरबार में जिनको न जगह मिल पायी
हाँ, वही लोग सुनाने को कहानी देंगे
लब खुले गर न हमारे तो है वादा उनका
भर के झोली वो हमें सारी ख़ुदाई देंगे
आसमानों में सियासत जो चले धरती की
चाँद के नाम पे तारे भी उगाही देंगे
रख लिया जत्न से बाबा की पुरानी अचकन
और तो कुछ नहीं, ये रौब नवाबी देंगे
बस यही सोच के महफ़िल में चले आए हैं
एक-दो दाद वो ग़ज़लों पे हमारी देंगे
(युगीन काव्या, जुलाई-सितम्बर 2012)
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|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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अपने पहलू में जगह गर वो ज़रा सी देंगे
चाँद-सूरज भी हमें झुक के सलामी देंगे
जश्न हो ख़त्म ज़रा क़त्ल का मेरे, तो फिर
चल के कुछ यार भी क़ातिल की गवाही देंगे
उनके दरबार में जिनको न जगह मिल पायी
हाँ, वही लोग सुनाने को कहानी देंगे
लब खुले गर न हमारे तो है वादा उनका
भर के झोली वो हमें सारी ख़ुदाई देंगे
आसमानों में सियासत जो चले धरती की
चाँद के नाम पे तारे भी उगाही देंगे
रख लिया जत्न से बाबा की पुरानी अचकन
और तो कुछ नहीं, ये रौब नवाबी देंगे
बस यही सोच के महफ़िल में चले आए हैं
एक-दो दाद वो ग़ज़लों पे हमारी देंगे
(युगीन काव्या, जुलाई-सितम्बर 2012)