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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
छू लिया उसने ज़रा मुझको तो झिलमिल हुआ मैं
आस्माँ ! तेरे सितारों के मुक़ाबिल हुआ मैं
नाम बेशक न लिया उसने कभी खुल के मेरा
चंद ग़ज़लों में मगर उसकी तो शामिल हुआ मैं
हाल मौसम का, नई फिल्म या ऐं वें कुछ भी
कह गया सब, न कहा दिल की, यूँ बुज़दिल हुआ मैं
पर्स में वो तो लिए फिरता है तस्वीर मेरी
और सरगोशियों में शह्र की दाख़िल हुआ मैं
ऊँगलियाँ उठने लगीं हाय मेरी ज़ानिब अब
"उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं"
उसने जो पूछ लिया कल कि "कहो, कैसे हो"
बाद मुद्दत के ज़रा ख़ुद को ही हासिल हुआ मैं
ज़िंदगी बह्र से खारिज हुई बिन उसके, और
काफ़िये ढूँढता मिसरा कोई मुश्किल हुआ मैं
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|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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छू लिया उसने ज़रा मुझको तो झिलमिल हुआ मैं
आस्माँ ! तेरे सितारों के मुक़ाबिल हुआ मैं
नाम बेशक न लिया उसने कभी खुल के मेरा
चंद ग़ज़लों में मगर उसकी तो शामिल हुआ मैं
हाल मौसम का, नई फिल्म या ऐं वें कुछ भी
कह गया सब, न कहा दिल की, यूँ बुज़दिल हुआ मैं
पर्स में वो तो लिए फिरता है तस्वीर मेरी
और सरगोशियों में शह्र की दाख़िल हुआ मैं
ऊँगलियाँ उठने लगीं हाय मेरी ज़ानिब अब
"उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं"
उसने जो पूछ लिया कल कि "कहो, कैसे हो"
बाद मुद्दत के ज़रा ख़ुद को ही हासिल हुआ मैं
ज़िंदगी बह्र से खारिज हुई बिन उसके, और
काफ़िये ढूँढता मिसरा कोई मुश्किल हुआ मैं