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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह= पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हमारे हौसलों को ठीक से जब जान लेते हैं
अलग ही रास्ते फिर आँधियाँ-आँधी औ' तूफ़ान लेते हैं
बहुत है नाज़ रुतबे पर उन्हें अपने, चलो माना
है ढलती शाम जब,तो पूछता है दिन थका-माँदा
"सितारे डूबते सूरज से क्या सामान लेते हैं?"</poem>  (समावर्तन, जुलाई 2014 "रेखांकित" , लफ़्ज़ सितम्बर-नवम्बर 2011)
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