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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह= पाल ले इक रोग नादाँ / गौतम राजरिशी
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{{KKCatGhazal}}
<poem>
तू जो मुझसे जुदा नहीं होता
मैं ख़ुदा से ख़फ़ा खफ़ा नहीं होता
ये जो कंधे नहीं तुझे मिलते
तू तो इतना तू बड़ा नहीं होता
सच की ख़ातिर न खोलता मुख गरसर ये मेरा कटा नहीं होता  चांद चाँद मिलता न राह में उस रोज़रोजइश्क इश्क़ का हादसा नहीं होता
पूछते रहते हाल-चाल अगर
फ़ासला यूँ यूं बढ़ा नहीं होता
छेड़ते तुम न गर निगाहों से
मन मेरा मनचला नहीं होता
होती हर शै पे मिल्कियत कैसे
तू मेरा गर हुआ नहीं होता
कहती है माँ, कहूँ मैं सच हरदम
क्या करूँ, हौसला नहीं होता </poem>    (अनन्तिम, अप्रैल-जून 2011)
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