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/* इस विधा का काव्य अनुशासन */
* वर्तमान में संसार भर में फैले हिंदुस्तानियों की इन्टरनेट पर फैली रचनाओं के माध्यम से यह विधा हिन्दुस्तानी कविता -जगत में ही नही वरन् विभिन्न देशों में हिन्दी काव्य -जगत् में प्रमुखता से अपना स्थान बना रही है।
==इस विधा का काव्य अनुशासन==
कुछ लोग इस विधा की तुलना हिन्दी काव्य विधा [[त्रिवेणी]] से करते हैं। हाइकु और [[त्रिवेणी]] में केवल इतनी समानता है कि दोनों में केवल तीन पंक्तियाँ होती है । तीन पंक्तियों के साम्य के अतिरिक्त इन दोनो विधाओं में अन्य कोई साम्य नहीं है। हाइकु के अनुरूप [[त्रिवेणी]] भी तीन पंक्तियों वाली कविता है, यह माना जाता है कि [[त्रिवेणी]] विधा को [[गुलज़ार]] साहब ने विकसित किया। [[त्रिवेणी / गुलज़ार| त्रिवेणी]] की रचना का मूल प्रेरणा स्रोत भी जापानी काव्य ही कहा जाता है।
इस जापानी विधा को हिन्दी काब्य जगत के अनुशासन से परिचित कराते हुए डॉ0 [[जगदीश व्योम]] ने बताया है:-
* हाइकु सत्रह (17) वर्णों में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में 5 वर्ण दूसरी में 7 और तीसरी में 5 वर्ण रहते हैं।
* हाइकु कविता में 5-7-5 का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छन्द की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी।
* इस संबंध में डा० ब्योम जी का मानना है कि हिन्दी अपनी बात कहने के लिये अनेक प्रकार के छंदों का प्रचलन है; अतः उपर्युक्त अनुशासन से भिन्न प्रकार से लिखी गई पंक्तियों को हाइकु न कहकर मुक्त छंद अथवा [[क्षणिका]] ही कहना चाहिए।
* वास्तव में हाइकु का मूल स्वरूप कम शब्दों में ‘घाव करें गम्भीर ’ की कहावत को चरितार्थ करना ही है। अतः शब्दों के अनुशासन से इतर लिखी गयी रचना को हाइकु कहकर संबोधित सम्बोधित करना उसके मूल स्वरूप के साथ छेड़छाड ही कहा जाएगा।
प्रकृति के भावप्रवण चित्रण हेतु हाइकु एक सशक्त विधा है ।