भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|संग्रह=गुमसैलॅ धरती / सुरेन्द्र 'परिमल'
}}
{{KKCatAngikaRachnakaarKKCatAngikaRachna}}
<poem>
घरॅ भरी में सबके सब छै अस्त-व्यस्त,